به اذن خدای فرشته
رو سر در حرمش نوشته
اُدخِلو بـِسَلامٍ آمنین
یعنی اینجا خوده خود ِبهشته
دهم فروردین۱۳۶۵ بیمارستان امین اصفهان
تازه تونسته بودم به کمک بالش و بالا اوردن تخت به حالت نیمه نشسته ! دربیام.
درد امونم را بریده بود.غروب یک روز دلگیر،خورشید داشت بساطش را جمع میکرد
که صدای اذانی از مسجدی درهمان حوالی توجهم را جلب کرد.به هزار زحمت و
گردن دراز کردن تونستم از پنجره به بیرون نگاه کنم.ریسه های زرد و قرمز رنگ
روی گنبد مسجد بی اختیار کبوتر دلم را راهی حرم امن مولا علی بن موسی الرضا(ع) کرد
مجبور شدم به هرکسی رو بزنمدر محضر هر غریبه زانو بزنم
تحقیرشدم،چونکه فراموشم شدیک سر به شما ضامن آهو بزنم
همون موقع عهد کردم و زیر لب گفتم:یا امام رضا مدد کن بتونم از جام بلندشم
قول میدم اولین جایی که برم حرم خودت باشه و بس!.
کنار سفره که بودیم حرف مشهد شـد
وزید بوی خراسان و ناگـهان رد شد
دوباره یـاد غریب آشـنا و شـوق حرم
و سیل اشک که پشت پلکها سد شد
پاییز1365
بالاخره بعداز شیش ماه سرپا شده!.و برای اولین بار راهی مشهدالرضا شدم.
دو روز بـعد بلیـط و شـروع یک پرواز
کبوترانـه دلـم بـی قـرار گنبـد شد
قطار تهران،مشهد درست ساعت هشت
و ایستگاه که سرشار بـوق ممتد شد
و چند ساعت دیـگر به صحـن آزادی
نگاه منتظرم گـرم رفـت و آمـد شد
یادمه بعداز برگشت ازحرم مولا دیگه عصا را هم کنار گذاشتم و تا امروز هرچی دارم
از سر مهر و لطف امام رضا میدونم ولاغیر!
حتما که نباید کنار صحن و سرا و بخصوص پنجره فولاد آقا باشی تا شفاعتت را بکنه!
کافیه ازصمیم دل بخوانی و بخواهی.اونوقته که به وضوح شامل الطاف خفیه حضرت میشی
هرصبحگاه وقتی خورشید را دیدی بهش سلام کن.چرا که در دیارما،خورشید گرما و
انوار طلایی اش را هربامداد متبرّک میکند به گنبد زرد رنگ خورشیدمشرقی
میلادامام رئوف،علی بن موسی الرضا(ع) برهمگان مبارک باد
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زنده باشید و سلامت
تابعد
یاعلی مدد
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بنا داشتم خاطره نویسی داشته باشم از آن ایام افتخارآمیز.!!اما متاسفانه
دیروز خبری شنیدم که سخت آشفته ام ساخت و منصرف ازنوشتن!
آخه وقتی خانواده های شهیدان بزرگی همچون شهید همت و باکری
کمترین آزادی بیان را نداشته و شدیدترین هتاکی ها را به چشم خود میبینند
دیگه جایی برای عرض اندام همچون منی نمیماند!
مگر چه گفته بود همسر شهید باکری که نیروهای خودسر(که البته مسلّم
است ازجایی فرمان میگیرند!)او وفرزندانش را باچماق و شُک دهنده های
برقی مورد نوازش قرار دادند؟!
جز اینکه به سردار جعفری که به آشنایی نزدیک با شهید باکری افتخار
میکند نامه ای نوشته و از راهی که سپاه در پیش گرفته گلایه نموده و
نظرش براین بود که راه در پیش گرفته شده خیانت است به خون شهدا؟!.
آیا در مملکت گل و بلبل ما پاسخ همسر شهید همت ها باتوم برکمر ِ تازه
جراحی شده شان است و بازداشت توهین آمیز فرزند شهید؟!
زهی مایه تأسف که این جریانات در ایام سالگرددفاع مقدس روی داد!
تاسف انگیزتر اینکه همزمان هزاران کیلومتر آنطرف تر رییس جمهور
در کنفرانس خبری ادّعا میکند که مخالفین من در ایران از آزادی کامل
برخوردارند.سخنی که خود نیز به بُطلان بودنش ایمان دارند.شاهد ِمثال
نیز بجُز از برخورد خشونت آمیز با خانواده سرداران شهید"
حذف فلّه ای ِ روزنامه ها و رسانه های مخالف جناح حاکم است...
گرچه صدایم به جایی نمی رسه اما به نشانه اعتراض به این دَدمنشی ها
خاطرات دفاع مقدّس را که عده ای از دوستان خواستارش بودند ،
را متوقف میکنم.!.چرا که همه چی آرومه!!.فقط یادمان نرود که:
شهدا خون دادند، تا نهال های فردا،سبز باشند و آزاد
امشب نوشت: *بدون شرح*
احمدی نژاد: آن دسته از مصوبات مجلس را که اجرا نمیکنم، قانون نمیدانم...
غلط میکنی قانون را قبول نداری،قانون تو را قبول ندارد...
(صحیفه امام خمینی،جلد 14،صفحه 378 )